Monday, 14 December 2015

विवाह के तीन सूत्र ग्रह : गुरु, शुक्र व मंगल के प्रभाव बारे में बता रहा हूँ 09317666790

**ग्रहों का प्रभाव: विवाह और दांपत्य जीवन की दृष्टि से**


ऊँ नमो आदेश आदेश गुरु को। मैं आपका दोस्त पंडित नरेश नाथ, आज आपको विवाह और दांपत्य जीवन में गुरु, शुक्र और मंगल के प्रभाव के बारे में जानकारी दे रहा हूँ। जब किसी व्यक्ति की कुण्डली से दांपत्य का विचार किया जाता है, तो इन तीन ग्रहों का विशेष रूप से विश्लेषण किया जाता है। 


### 1. गुरु की भूमिका


गुरु, या बृहस्पति, विवाह के लिए एक महत्वपूर्ण ग्रह है। सुखी दांपत्य जीवन के लिए गुरु का पाप प्रभाव से मुक्त होना आवश्यक है। अगर गुरु की शुभ दृष्टि सप्तम भाव पर हो, तो यह विवाह में स्थिरता और मजबूती बनाए रखता है। गुरु संतान का कारक भी है। गुरु के पीड़ित होने पर विवाह में विलंब और संतान प्राप्ति में बाधाएँ आती हैं।


### 2. शुक्र की भूमिका


शुक्र वैवाहिक सुख का मुख्य ग्रह है। पति-पत्नी दोनों की कुण्डली में शुक्र का पाप प्रभाव से मुक्त और बलवान होना आवश्यक है। यदि कुण्डली में शुक्र अशुभ स्थिति में हो, तो पति या पत्नी में से किसी के जीवन साथी के अलावा अन्यत्र संबंधों की ओर झुकाव हो सकता है। जब शुक्र बली, पाप प्रभाव से मुक्त, और किसी उच्च ग्रह के साथ शुभ भाव में स्थित हो, तो दांपत्य जीवन सुखद होता है।


### 3. मंगल की भूमिका


मंगल का दांपत्य जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। मंगल के कारण मांगलिक योग का निर्माण होता है, जो विवाह में बाधाएं ला सकता है। मांगलिक योग के कारण दांपत्य जीवन में तनाव और समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। मंगल के विभिन्न भावों में स्थिति के आधार पर विवाह के सुख में कमी या वृद्धि हो सकती है। कई बार अन्य शुभ योग मंगल की अशुभता को कम कर देते हैं।


विवाह के समय इन तीनों ग्रहों का गहराई से अध्ययन करना अत्यंत आवश्यक है। अगर आपकी कोई समस्या या सुझाव हो, तो मेरे वट्सऐप नंबर पर मैसेज करें या सुबह 10-11 बजे के बीच फोन करें या मेल करें:  

Shivjyotish9@gmail.com  

09317666790  

जय महाकाली






No comments:

Post a Comment