Wednesday, 23 December 2015

क्रोध एक छोटी सी कहानी

### कहानी: क्रोध और कीलें - गहरा अर्थ


#### परिचय


एक 12-13 साल के लड़के को बहुत क्रोध आता था। उसके पिता ने उसे ढेर सारी कीलें दीं और कहा कि जब भी उसे क्रोध आए, वह घर के सामने लगे पेड़ में कीलें ठोंक दे।


#### कीलें ठोंकने का सबक


- **पहला दिन:** लड़के ने पेड़ में 30 कीलें ठोंकी।

- **धीरे-धीरे नियंत्रण:** अगले कुछ हफ्तों में, उसे अपने क्रोध पर धीरे-धीरे नियंत्रण करना आ गया। अब वह पेड़ में प्रतिदिन इक्का-दुक्का कीलें ही ठोंकता था।

- **समझ की शुरुआत:** उसे यह समझ में आ गया कि पेड़ में कीलें ठोंकने के बजाय क्रोध पर नियंत्रण करना आसान था।

- **एक दिन:** ऐसा भी आया जब उसने पेड़ में एक भी कील नहीं ठोंकी।


#### कीलें निकालने का सबक


जब उसने अपने पिता को यह बताया, तो पिता ने उससे कहा कि वह सारी कीलों को पेड़ से निकाल दे। लड़के ने बड़ी मेहनत करके जैसे-तैसे पेड़ से सारी कीलें खींचकर निकाल दीं। जब उसने अपने पिता को काम पूरा हो जाने के बारे में बताया, तो पिता बेटे का हाथ थामकर उसे पेड़ के पास लेकर गया।


#### पिता की शिक्षा


पिता ने पेड़ को देखते हुए बेटे से कहा:


“तुमने बहुत अच्छा काम किया, मेरे बेटे, लेकिन पेड़ के तने पर बने सैकड़ों कीलों के इन निशानों को देखो। अब यह पेड़ इतना खूबसूरत नहीं रहा। हर बार जब तुम क्रोध किया करते थे, तब इसी तरह के निशान दूसरों के मन पर बन जाते थे।


अगर तुम किसी के पेट में छुरा घोंपकर बाद में हजारों बार माफी मांग भी लो, तब भी घाव का निशान वहां हमेशा बना रहेगा।


ऐसा-कर्म न करो जिसके लिए पछताना पड़े।"


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**जय महाकाली!**





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