**आत्माA AकीA Aशुद्धिA: सच्चेA AसुखA AकाA Aमार्गA**
धर्म में आस्था रखने वाले लोग कभी-कभी भगवान से शिकायत करते हैं कि उनकी पूजा-पाठ और प्रार्थना का कोई असर नहीं होता। वे नियमपूर्वक भक्ति करते हैं, लेकिन उनके जीवन में दुख और अशांति बनी रहती है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि इंसान की पूजा-पाठ और प्रार्थना ईश्वर तक क्यों नहीं पहुंचती?
इन सवालों के जवाब के लिए एक प्रेरणादायक कथा की ओर चलते हैं।
प्रसिद्ध राजा प्रसून के जीवन की यह घटना है। अपने गुरु के विचारों से प्रेरित होकर राजा ने राज्य का त्याग कर दिया और साधु-संन्यासियों की तरह गेरुए वस्त्र पहनकर भिक्षाटन करने लगे। उन्होंने भजन-कीर्तन, जप-तप, और पूजा-पाठ में लंबा समय व्यतीत किया, लेकिन मन की शांति उन्हें प्राप्त नहीं हुई। निराश होकर, राजा अपने गुरु के पास गए और अपनी समस्या बताई।
गुरु ने हंसते हुए पूछा, "जब तुम राजा थे, तब अपने उद्यान का निरीक्षण करते समय माली को किस हिस्से का विशेष ध्यान रखने को कहते थे?" राजा ने उत्तर दिया, "गुरुदेव, पौधे का हर हिस्सा महत्वपूर्ण होता है, लेकिन यदि जड़ों का ध्यान न रखा जाए, तो पूरा पौधा सूख जाएगा।"
गुरु प्रसन्न होकर बोले, "वत्स! पूजा-पाठ, जप-तप, और यह साधु-संन्यासियों का पहनावा भी सिर्फ फूल-पत्तियां ही हैं, असली जड़ तो आत्मा है। यदि आत्मा का शुद्धिकरण नहीं हुआ, तो बाहरी क्रियाएं सिर्फ आडंबर बनकर रह जाती हैं। आत्मा की पवित्रता का ध्यान न रखने के कारण बाहरी कर्मकांड बेकार हो जाते हैं।"
इस कथा का सार यह है कि आत्मा के निखार और जागरण में ही सच्चा सुख, शांति, और स्थाई समृद्धि संभव है। अन्यथा, बाहरी पूजा-पाठ केवल मनोरंजन बनकर रह जाते हैं।
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जय महाकाली!
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