ऊँ नमो आदेश आदेश गुरु जी को मैं आपका दोस्त पंडित नरेश नाथ आज आपको बता रहा हूँकी पितृदोष किसे कहते है ?
हमारे पूर्वज, पितर जो कि अनेक प्रकार की कष्टकारक योनियों में अतृप्ति, अशांति, असंतुष्टि का अनुभव करते हैं एवं उनकी सद्गति या मोक्ष किसी कारणवश नहीं हो पाता तो हमसे वे आशा करते हैं कि हम उनकी सद्गति या मोक्ष का कोई साधन या उपाय करें जिससे उनका अगला जन्म हो सके एवं उनकी सद्गति या मोक्ष हो सके। उनकी भटकती हुई आत्मा को संतानों से अनेक आशाएं होती हैं एवं यदि उनकी उन आशाओं को पूर्ण किया जाए तो वे आशिर्वाद देते हैं। यदि पितर असंतुष्ट रहे तो संतान की कुण्डली दूषित हो जाती है एवं वे अनेक प्रकार के कष्ट, परेशानीयां उत्पन्न करते है, फलस्वरूप कष्टों तथा र्दुभाग्यों का सामना करना पडता है।
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पितृदोष से होने वाली हानिया—–
यदि किसी जातक की कुंडली मे पित्रृदोष होता है तो उसे अनेक प्रकार की परेशानियां, हानियां उठानी पडती है। जो लोग अपने पितरों के लिए तर्पण एवं श्राद्ध नहीं करते, उन्हे राक्षस, भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी-शाकिनी, ब्रहमराक्षस आदि विभिन्न प्रकार से पीडित करते रहते है।
—–घर में कलह, अशांति रहती है।
—–रोग-पीडाएं पीछा नहीं छोडती है।
——घर में आपसी मतभेद बने रहते है।
——-कार्यों में अनेक प्रकार की बाधाएं उत्पन्न हो जाती है।
——-अकाल मृत्यु का भय बना रहता है।
——–संकट, अनहोनीयां, अमंगल की आशंका बनी रहती है।
——-संतान की प्राप्ति में विलंब होता है।
——–घर में धन का अभाव भी रहता है।
———अनेक प्रकार के महादुखों का सामना करना पडता है।
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पितृदोष के लक्षण——–
—–घर में आय की अपेक्षा खर्च बहुत अधिक होता है।
—-घर में लोगों के विचार नहीं मिल पाते जिसके कारण घर में झगडे होते रहते है।
—–अच्छी आय होने पर भी घर में बरकत नहीं होती जिसके कारण धन एकत्रित नहीं हो पाता।
—–संतान के विवाह में काफी परेशानियों का समना करना पड़ता हैंऊ
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