आध्यात्मिक शरीर के सात चक्र: उनकी विशिष्टता और प्रभाव
आध्यात्मिक शरीर के सात चक्र: उनकी विशिष्टता और प्रभाव**
आध्यात्मिक शरीर के सात चक्र, ऊर्जा केंद्र हैं जो हमारे जीवन की विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करते हैं। प्रत्येक चक्र अपनी विशिष्ट विशेषताओं और प्रभावों के साथ जुड़ा हुआ है। यहाँ एक नजर डालते हैं इन चक्रों की विशेषताओं और उनके जागरण की विधियों पर:
1. **मूलाधार चक्र (आधार चक्र)**
- **स्थिति:** गुदा और लिंग के बीच
- **पंखुड़ियाँ:** चार
- **मंत्र:** "लं"
- **जागरण विधि:** भोग, निद्रा, और संभोग पर संयम रखकर ध्यान लगाना।
- **प्रभाव:** वीरता, निर्भीकता, और आनंद का जागरण होता है। यह चक्र जाग्रत होने पर व्यक्ति का आत्म-संयम और साहस बढ़ता है।
2. **स्वाधिष्ठान चक्र**
- **स्थिति:** लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर
- **पंखुड़ियाँ:** छह
- **मंत्र:** "वं"
- **जागरण विधि:** मनोरंजन की आदत पर संयम रखना और इसके झूठेपन को समझना।
- **प्रभाव:** क्रूरता, गर्व, और आलस्य का नाश होता है। व्यक्ति अधिक संवेदनशील और संयमित हो जाता है।
3. **मणिपुर चक्र**
- **स्थिति:** नाभि के मूल में
- **पंखुड़ियाँ:** दस
- **मंत्र:** "रं"
- **जागरण विधि:** पेट से श्वास लेकर इस चक्र पर ध्यान केंद्रित करना।
- **प्रभाव:** तृष्णा, ईर्ष्या, और भय का नाश होता है। आत्मशक्ति और आत्मबल में वृद्धि होती है।
4. **अनाहत चक्र**
- **स्थिति:** हृदय स्थल में
- **पंखुड़ियाँ:** बारह
- **मंत्र:** "यं"
- **जागरण विधि:** हृदय पर ध्यान लगाना और संयम बनाए रखना।
- **प्रभाव:** प्रेम, संवेदना, और आत्मविश्वास का जागरण होता है। व्यक्ति एक सृजनशील और जिम्मेदार बन जाता है।
5. **विशुद्ध चक्र**
- **स्थिति:** कंठ में
- **पंखुड़ियाँ:** सोलह
- **मंत्र:** "हं"
- **जागरण विधि:** कंठ पर ध्यान केंद्रित करना और संयम रखना।
- **प्रभाव:** सोलह कलाओं और विभूतियों का ज्ञान होता है। भूख और प्यास को नियंत्रित किया जा सकता है।
6. **आज्ञाचक्र**
- **स्थिति:** भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच)
- **पंखुड़ियाँ:** दो
- **मंत्र:** "ऊं"
- **जागरण विधि:** भृकुटि के मध्य में ध्यान लगाना और साक्षी भाव में रहना।
- **प्रभाव:** बौद्धिक सिद्धियाँ और शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न और संवेदनशील हो जाता है।
7. **सहस्रार चक्र**
- **स्थिति:** मस्तिष्क*के*मध्य*भाग*में
- **पंखुड़ियाँ:** हजार
- **मंत्र:** नहीं
- **जागरण विधि:** निरंतर ध्यान और साधना के माध्यम से।
- **प्रभाव:** मोक्ष का द्वार खुलता है। व्यक्ति आनंदमय और स्वतंत्र हो जाता है।
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