Thursday, 28 April 2016

ज्योतिष की मूलभूत जानकारी

ॐ नमो आदेश आदेश। गुरु जी को प्रणाम। मैं आपका मित्र, पंडित नरेश नाथ, आज ज्योतिष की कुछ विशेष जानकारी लेकर आपके समक्ष उपस्थित हूँ।


यदि आपकी ज्योतिष, तंत्र, यंत्र से संबंधित कोई भी समस्या है, जैसे ग्रह बाधा, शत्रुपक्ष से बाधा, धन और व्यापार का बंधन, पारिवारिक कलेश, दवाओं का न लगना, विवाह बाधा, विदेश यात्रा आदि, तो समाधान के लिए हमें संदेश करें या फोन करें। हर प्रकार की असली सामग्री, जैसे असली रत्न और रुद्राक्ष के लिए भी संपर्क कर सकते हैं।


### ज्योतिष की बुनियादी जानकारी


पृथ्वी की दैनिक गति के कारण बारह राशियों का चक्र (राशिचक्र) चौबीस घंटों में हमारे क्षितिज का एक चक्कर पूरा करता है। जो राशि क्षितिज पर उभरती है उसे 'लग्न' कहते हैं। लग्न और उसके बाद की राशियाँ, तथा सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु आदि ग्रह जन्मपत्री के मूल उपकरण हैं। लग्न से आरंभ कर इन बारह राशियों को 'द्वादश भाव' कहते हैं। लग्न शरीर के प्रतीक हैं और शेष भाव शरीर से संबंधित विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसे धन, बंधु, सुख, संतान, शत्रु, पत्नी , *मृत्यु,*धर्म,*आय*(लाभ)*और*व्यय*(खर्च)।


इन भावों की स्थापना इस प्रकार की गई है कि मनुष्य के जीवन की सभी आवश्यकताएँ इनमें समाहित हो जाती हैं। इनमें प्रथम (लग्न), चतुर्थ (सुख), सप्तम (पत्नी) और दशम (व्यापार) इन चार भावों को प्रमुख केंद्र माना गया है।


### भावों का महत्व


आकाश में इनकी स्थिति ही इनकी प्रमुखता का कारण है। लग्न पूर्व क्षितिज और क्रांति वृत्त का संयोग बिंदु है, सप्तम पश्चिम क्षितिज और क्रांति वृत्त का संयोग बिंदु है। इसी प्रकार दक्षिणोत्तर वृत्त और क्रांति वृत्त का वह संयोग बिंदु जो हमारे क्षितिज के नीचे है वह चतुर्थ भाव है और क्षितिज के ऊपर हमारे सिर की ओर (दक्षिणोत्तर वृत्त और क्रांति वृत्त) का संयोग बिंदु दशम भाव कहलाता है। इन केंद्रों के दोनों ओर जीवन से संबंधित अन्य आवश्यकताओं और परिणामों को दर्शाने वाले स्थान होते हैं। लग्न (शरीर) के दाहिनी ओर व्यय है, बाईं ओर धन का घर है। चौथे (सुख) के दाहिनी ओर बंधु और पराक्रम हैं, बाईं ओर संतान और विद्या हैं। सप्तम स्थान (पत्नी) के दाहिनी ओर शत्रु और व्याधि हैं, तो बाईं ओर मृत्यु है। दशम (व्यवसाय) के दाहिनी ओर भाग्य और बाईं ओर आय (लाभ) है।


### ग्रहों का फल


जन्मपत्री में बारह राशियों के स्वामी सात ग्रहों में परस्पर मैत्री, शत्रुता और तटस्थता की कल्पना की गई है। ग्रहों की ऊँची और नीची राशियाँ भी इस उद्देश्य के लिए *कल्पित*की*गई हैं।*किसी*भाव*में।* स्थित*ग्रह*यदि*अपने*घर में हो तो भावफल उत्तम, मित्र के घर में हो तो मध्यम,*और*शत्रु*के*घर*में*हो *तो*निम्न*कोटि*का*होता*है।*उच्च*ग्रह शुभ फल देते हैं और नीच ग्रह अशुभ।


### ग्रहों की स्थिति


जन्मपत्री में मंगल की राशि मेष और वृश्चिक होती है तथा मकर उच्च राशि है। वृष और तुला शुक्र की राशियाँ हैं और मीन उच्च राशि है। मिथुन और कन्या बुध की राशियाँ हैं और कन्या ही उसका उच्च स्थान भी है। कर्क चंद्रमा की राशि है और वृष उच्च राशि है। सिंह*सूर्य*की*राशि*है*और*मेष *उच्च*राशि*है।*धनु*और*मीन*बृहस्पति*की*राशियाँ*हैं *और*कर्क*उच्च*राशि*है।*मकर*और*कुंभ*का*स्वामी *शनि*है और*तुला*उसकी*उच्च राशि है।


### विभिन्न प्रणालियाँ


हिंदू और यूनानी ज्योतिष प्रणालियों में भावों की कल्पना एक समान है, किंतु 6, 11 और 12 भावों में भेद है। हिंदू प्रणाली में छठा भाव शत्रु और रोग दोनों का विचार करता है, 


ग्रहों के संबंधों और अन्य संभावित परिस्थितियों पर आधारित फलादेश प्राणियों पर घटित होने वाली घटनाओं के अनुरूप होते हैं। ग्रहों की स्वाभाविक मैत्री, विरोध और तटस्थता तथा तात्कालिक विद्वेष, सौहार्द्र और समभाव की मान्यताएँ जन्मपत्री के लिए आधारशिला के रूप में मानी जाती हैं। इसी प्रकार सूर्य आदि सात ग्रहों को क्रमशः आत्मा, मन, शक्ति, वाणी, ज्ञान, काम, दुख, तथा मेष आदि बारह राशियों को शरीर के विभिन्न अंगों के प्रतीक माना जाता है। ग्रहों के श्वेत आदि वर्ण, ब्राह्मण आदि जाति, सौम्य, क्रूर आदि प्रकृति की *मान्यताएँ *भी- प्राणिवर्ग*के*रूप*रंग*जाति*और *मनोवृत्ति*के*परिचय*के*लिए*ही*हैं।


इस प्रकार, ज्योतिष की गहराई में जाकर हम अपने जीवन की समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं। किसी भी प्रकार की ज्योतिष संबंधी समस्या के समाधान के लिए हमें संपर्क करें।

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जय महाकाली

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