### नमस्कार, मैं हूं पंडित नरेश नाथ
आज के इस एपिसोड में आप सभी का स्वागत है। हमारे चैनल और ब्लॉग पर आपको मिलेंगे ऐसे दिव्य और अचूक तांत्रिक टोटके, वैदिक ज्योतिष, लाल किताब, और वास्तु शास्त्र के उपाय जिनसे आप अपने जीवन में आ रही सभी प्रकार की समस्याओं को पल भर में दूर कर सकते हैं। इसके लिए आपको हमारे द्वारा बताए गए उपाय को सावधानीपूर्वक करना होगा। मेरा प्रयास हमेशा यही रहता है कि मैं आपको समर्थ बना सकूं ताकि साधना मार्ग के द्वारा आपकी आध्यात्मिक और भौतिक उन्नति हो सके।
### ब्रह्माजी अति शीघ्र संपूर्ण फल देनेवाला मंत्र
आज के इस एपिसोड में हम आपको बताने जा रहे हैं ब्रह्माजी के अति शीघ्र संपूर्ण फल देनेवाले मंत्र के बारे में। ब्रह्माजी सृष्टि के सर्जनकर्ता कहे जाते हैं। पहले के युग में ब्रह्मदेव की तपस्या के द्वारा तपस्वी अनेको वरदान एवं दुर्लभ सिद्धियां प्राप्त करते थे। ऐसी अनेक कथाएं शास्त्रों में मिलती हैं। पुष्कर तीर्थ में ही ब्रह्मदेव की उपासना 'मुख्य रूप से की जाती है।
महानिर्वाण तंत्र में स्वयं शिव ने पार्वती से ब्रह्मदेव मंत्र की प्रशंसा करते हुए कहा है कि यह मंत्र सभी मंत्रों में सर्वश्रेष्ठ है। इस मंत्र के प्रभाव से मानव धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की प्राप्ति सरलता से कर सकता है। इस मंत्र की सिद्धि-असिद्धि चक्र का विचार नहीं किया जाता है। शत्रु-मित्रादि दोषों से पूरी तरह से मुक्त है। इस परम पवित्र मंत्र का जप करने के लिये तिथि, नक्षत्र, राशि, वार, कुलाकुल आदि का विचार भी नहीं किया जाता। इस मंत्र के जप में दस प्रमुख संस्कारों के विधान की भी आवश्यकता नहीं होती। परमपिता ब्रह्मा जी की उपासना में न आवाहन की आवश्यकता है न विसर्जन की। किसी भी समय, किसी भी स्वच्छ स्थान में इनकी उपासना की जा सकती है। स्नान किए या बिना स्नान किए, कुछ खाए या बिना खाए, किसी भी अवस्था में शुद्ध मन से इनकी पूजा की जा सकती है।
ब्रह्म उपासक के सामने आते ही ग्रह, वेताल, चेटक, पिशाच, भूत, डाकिनी, शाकिनी, मातृकादि सदा के लिए पलायन कर जाते हैं। ब्रह्म मंत्र से रक्षित मनुष्य संसार के सभी भयों से सदा के लिए मुक्त होकर राजा की तरह विचरण करता हुआ लंबें समय तक समस्त सुखों का भोग करता है। सकाम साधना करने वाले मनुष्य प्रणव के स्थान पर ऐं, ह्रीं, श्रीं, क्लीं या अन्य बीज लगाकर अपनी समस्त कामनाओं की अति शीघ्र पूर्ति कर सकते हैं। शक्ति हो या शिव, वैष्णव हो या गणेश, या किसी भी देवी-देवता का उपासक हो, ब्राह्मण हो या किसी अन्य जाति का, सभी वर्ण के मनुष्य ब्रह्ममंत्र के अधिकारी होते हैं।
### विनियोग
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ॐ अस्य श्री परब्रह्ममंत्र, सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप् छंदः, निर्गुण सर्वान्तर्यामी परम्ब्रह्मदेवता, चतुर्वर्गफल सिद्धयर्थे विनियोगः।
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### ऋष्यादिन्यास
```
सदाशिवाय ऋषये नमः शिरसि।
अनुष्टुप् छंदसे नमः मुखे।
सर्वान्तर्यामी निर्गुण परमब्रह्मणे देवतायै नमः हृदि।
धर्मार्थकाममोक्षावाप्तये विनियोगः सर्वांगे।
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### करन्यास
```
ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः।
सत् तर्जनीभ्यां स्वाहा।
चित् मध्यमाभ्यां वषट्।
एकं अनामिकाभ्यां हुं।
ब्रह्म कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्।
ॐ सच्चिदेकं ब्रह्म करतलकरपृष्ठाभ्यां फट्।
```
### हृदयादिन्यास
```
ॐ हृदयाय नमः।
सत् शिरसे स्वाहा।
चित् शिखायै वषट्।
एकं कवचाय हुं।
ब्रह्म नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ सच्चिदेकं ब्रह्म अस्त्राय फट्।
```
### ध्यानम्
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हृदयकमलमध्ये निर्विशेषं निरीहं,
हरिहर विधिवेद्यं योगिभिर्ध्यानगम्यम्।
जननमरणभीति भ्रंशि सच्चित्स्वरूपं,
सकलभुवनबीजं ब्रह्म चैतन्यमीडे।
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### ब्रह्म मंत्र
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ॐ सच्चिदेकं ब्रह्म।
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### परब्रह्म गायत्री मंत्र
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ॐ परमेश्वराय विद्महे परतत्त्वाय धीमहि तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात्।
```
### विधि
ब्रह्ममंत्र का पुरश्चरण बत्तीस हजार जप का है। साधक प्राण प्रतिष्ठित श्री ब्रह्म यंत्र को सामने रख कर प्राण प्रतिष्ठि स्फटिक माला से इस मंत्र का जप करे। जप के बाद विधि विधान से दशांश हवन करे, हवन का दशांश तर्पण करे, तर्पण का दशांश मार्जन करे तथा मार्जन का दशांश ब्राह्मणों को भोजन करवाए। ब्रह्ममंत्र का पुरश्चरण करते समय भक्ष्याभक्ष्य का विचार नहीं किया जाता है। जैसी आपकी सुविधा हो आप वैसे जप कर सकते हो, किसी विशेष नियम की जरूरत नहीं होती जैसे काल शुद्धि तथा स्थान परिवर्तन का कोई नियम नहीं है। मुद्रा प्रदर्शित करना या ना करना, उपवास करके या बिना उपवास के, स्नान करके या बिना नहाए, अपनी इच्छा अनुसार इस अमोघा ब्रह्म मंत्र की साधना करें। भक्ति से जप करने से कम समय में निश्चय ही परब्रह्म का साक्षात्कार लाभ होता है। ब्रह्म गायत्री मंत्र उत्तम है, जो पूर्णिमा में उपवास करके गायत्री के अक्षरतत्त्वों द्वारा ब्रह्माजी की पूजा करता है, वह परम पद को प्राप्त होता है। जो कार्तिक की आमावस्या की रात को ब्रह्माजी के मंदिर में दीपक जलाता है, उसे परम पद प्राप्त होता है। इन्द्रियों को वश में कर गंगा तट, शिवालय, पुष्कर तीर्थ, पर्वत, गुफा या निर्जन जंगल में गुरु से दीक्षा प्राप्त कर ब्रह्मदेव की उपासना आरंभ करें।
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**जय महाकाली, हर हर महादेव!**
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