Monday, 17 June 2024

रामजी के ऊपर है हनुमान जी का कर्ज़ा: एक अनसुनी सच्ची कथा



रामजी के ऊपर है हनुमान जी का कर्ज़ा: एक अनसुनी सच्ची कथा

राम जी जब लंका पर विजय प्राप्त करके अयोध्या लौटे, तो कुछ समय पश्चात विभीषण, जामवंत, सुग्रीव और अंगद आदि को विदा कर दिया। सभी को लगा कि हनुमान जी को प्रभु बाद में विदा करेंगे, लेकिन राम जी ने हनुमान जी को विदा ही नहीं किया। अयोध्या में लोग चर्चा करने लगे कि सब चले गए, लेकिन हनुमान जी अभी भी अयोध्या में ही हैं। दरबार में भी चर्चा होने लगी कि हनुमान जी को जाने के लिए कौन कहे। सबसे पहले माता सीता से कहा गया कि आप कहें।  माता सीता ने कहा, "मैं तो लंका में बहुत दुःखी थी, एक-एक दिन हजारों वर्षों के समान बीत रहा था। हनुमान जी ही थे जो आपकी मुद्रिका लेकर आए और धीरज बंधाया। मैं तो अपने बेटे से नहीं कह सकती कि वह अयोध्या छोड़कर जाएं।" अब बारी आई लक्ष्मण जी की। लक्ष्मण जी बोले, "मैं तो लंका के रणभूमि में मरणासन्न पड़ा था, पूरा राम दल विलाप कर रहा था। हनुमान जी ने ही आकर धीरज बंधाया। मैं कैसे कहूं कि हनुमान जी अयोध्या छोड़कर जाएं।" फिर भरत जी की बारी आई। भरत जी बोले, "मुझ पर पहले ही राम जी को अयोध्या से निकलवाने का कलंक है। हनुमान जी ने ही आकर यह खबर दी कि राम जी जीतकर आ रहे हैं। मैं कैसे कहूं कि हनुमान जी अयोध्या छोड़कर जाएं।" शत्रुघ्न जी की बारी आई, तो उन्होंने कहा, "मैंने तो पूरी रामायण में कहीं नहीं बोला, अब हनुमान जी को अयोध्या छोड़ने के लिए कैसे कहूं।" अब बचे राम जी। माता सीता ने कहा, "प्रभु, आप तो तीनों लोकों के स्वामी हैं, और आप हनुमान जी से भी सकुचाते हैं। आप हमेशा कहते हो कि... **प्रति उपकार करौं का तोरा। सनमुख होइ न सकत मन मोरा।।** आखिरकार राम जी ने कहा, "देवी, हनुमान जी का कर्ज़ा चुकाना आसान नहीं है। मेरी इतनी सामर्थ्य नहीं है कि उनका कर्ज़ा उतार सकूं।" दूसरे दिन राज्य सभा में सभी लोग एकत्र हुए और राम जी ने हनुमान जी से कहा, "*तुम्हारी*इच्छा*बताओ,*तुम*भी*कुु *छ मांग लो।" हनुमान जी बोले, "प्रभु, आपने सबको एक-एक पद *दिया*है,"और*आप*कहते*हो*कि*मैं*लक्ष्मण से*भी*अधिक *प्रिय*हूँ। *तो*मुझे*दो*पद"दें।*।" सब सोचने लगे कि हनुमान जी ठीक कह रहे हैं। राम जी ने कहा, "ठीक है, मांग लो।" हनुमान जी ने राम जी के चरण पकड़ लिए और बोले, "प्रभु, मुझे तो बस आपके दोनों चरण चाहिए।" इस पर सभी ने हनुमान जी की भक्ति की प्रशंसा की और राम जी ने उन्हें अपने चरणों का आसरा दे दिया। हनुमान जी ने सिद्ध कर दिया कि उनके लिए सबसे बड़ा पद प्रभु के चरणों में ही है।यह कथा रामायण से प्रेरित है और मन को शांति और प्रसन्नता देती है।


No comments:

Post a Comment