Tuesday, 29 December 2015

गर्भस्थ शिशु क्या सोचता है, क्या प्रार्थना करता है और क्या कस्ट उठता है !!!

**गर्भस्थ शिशु के अनुभव और गरुड़ पुराण में उनका वर्णन**


## गर्भधारण का प्रारंभिक चरण


गर्भधारण की प्रक्रिया के आरंभ में, वीर्य और अंडाणु के मिलन से जीवन का अंकुरण होता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, यह प्रक्रिया धीरे-धीरे होती है। पहले महीने में शिशु का मस्तक बनता है। दूसरे महीने में उसके हाथ-पैर जैसे अंग विकसित होते हैं। 


## शिशु का शारीरिक विकास


तीसरे महीने में शिशु के अंगुलियों पर नाखून, त्वचा पर रोम, हड्डियाँ, और अन्य अंग जैसे नाक, कान, मुँह बनने लगते हैं। चौथे महीने में त्वचा, मांस, और रक्त का निर्माण होता है। पाँचवे महीने से शिशु को भूख-प्यास का अनुभव होता है।


## गर्भ के अंदर शिशु की स्थिति


छठे महीने में, शिशु गर्भ में घूमने लगता है, लेकिन माँ द्वारा खाए गए तीखे या मसालेदार भोजन से उसे कष्ट होता है। गरुड़ पुराण में वर्णित है कि शिशु गर्भ में गंदगी और मूत्र के स्थान पर रहता है, जो उसके लिए अत्यंत कष्टदायक होता है। 


## शिशु की प्रार्थना


सातवें महीने में, शिशु को ज्ञान की प्राप्ति होती है। वह भगवान विष्णु की स्तुति करता है और मोक्ष की प्रार्थना करता है। वह कहता है, "एa हेb विc विष्णुf! तj तुम्हारीu मa मायाg सेk मैंm मोहितv हूँ।"


## प्रसव और भूल


प्रसव के समय शिशु को काफी पीड़ा होती है, जिससे वह गर्भ के समय की स्मृतियाँ भूल जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, जन्म के समय शिशु के रोने का कारण यही है कि वह ज्ञान रहित हो जाता है।


## सलाह और सावधानी


पंडित नरेश नाथ का कोई शिष्य नहीं है, और उन्होंने किसी को दीक्षा नहीं दी है। कृपया ऐसे दावों से सावधान रहें। यदि आपको ज्योतिष या तंत्र-मंत्र की कोई समस्या हो, तो पंडित नरेश नाथ से संपर्क कर सकते हैं। उनका व्हाट्सएप नंबर 09317666790 है, और आप उन्हें सुबह 10 से 11 बजे के बीच फोन कर सकते हैं। **जय महाकाली।**








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