सृष्टि का हर तत्व रंगों से ओत-प्रोत है। फागुन के महीने में प्रकृति की सुंदरता देखते ही बनती है। जीवन में रंगों की यह भूमिका उत्सव का कारण बनती है, जैसे होली का पर्व। हर व्यक्ति किसी न किसी रंग में रंगा होता है। साधु-संन्यासी गेरुआ पहनते हैं, समाजसेवी सफेद, तो कलाकार रंग-बिरंगे वस्त्र धारण करते हैं।
### रंगों की महिमा
प्रकृति में असल में कोई रंग नहीं होता। पानी, हवा, अंतरिक्ष सब रंगहीन हैं। रंग का अस्तित्व केवल प्रकाश में है। एक वस्तु का रंग वही होता है जो वह त्यागती है। जैसे जीवन में, जो गुण आप दूसरों को देते हैं, वही आपके असली गुण बन जाते हैं।
#### लाल रंग:
लाल रंग ध्यान आकर्षित करने में सबसे प्रभावशाली है। यह ऊर्जा, उत्साह और जोश का प्रतीक है। देवी को भी इस रंग के साथ जोड़ा जाता है, क्योंकि वह ऊर्जा और उल्लास से परिपूर्ण होती हैं।
#### नीला रंग:
नीला रंग विशालता और गहराई का प्रतीक है। जैसे आकाश और समुद्र। यह रंग शांति और संतुलन का द्योतक है। कृष्ण का वर्णन नीले रंग में किया गया है, जो उनकी सर्वसमावेशी प्रकृति को दर्शाता है।
#### काला रंग:
काला रंग सब कुछ सोख लेता है और कुछ भी परावर्तित नहीं करता। यह ग्रहणशीलता का प्रतीक है। शिव को भी काला माना जाता है, क्योंकि वे सब कुछ समाहित कर लेते हैं।
#### सफेद रंग:
सफेद रंग शुद्धता और निर्लिप्तता का प्रतीक है। यह सब कुछ बाहर बिखेरता है और कुछ भी अपने पास नहीं रखता। आध्यात्मिक पथ पर सफेद वस्त्र पहनना उचित माना जाता है।
#### गेरुआ रंग:
गेरुआ रंग नये सवेरे का प्रतीक है। यह आज्ञा चक्र का रंग है, जो ज्ञान-प्राप्ति को सूचित करता है। यह रंग आपके आभामंडल का शुद्धीकरण करता है।
### वैराग्य - रंगों से परे
वैराग्य का अर्थ है रंगों से परे होना। पारदर्शिता का यह अर्थ है कि आप जहां भी होते हैं, उसी के हिस्से बन जाते हैं, पर आपसे कोई भी रंग चिपकता नहीं। अध्यात्म में वैराग्य का यही महत्व है।
आप जीवन में रंगों के इस खेल को समझकर खुद को ऊँचाई पर ले जा सकते हैं, जो राग और रंगों से परे है।
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जय महाकाली!
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