ऊँ नमो आदेश आदेश गुरु जी को। मैं आपका दोस्त पंडित नरेश नाथ। आज हम ज्योतिष और वास्तु के अटूट संबंध पर चर्चा करेंगे।
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वास्तु और ज्योतिष का संबंध शरीर और भवन के साहचर्य की तरह है। जिस प्रकार जीवात्मा का निवास शरीर में और हमारा निवास भवन में होता है, उसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र में भवन का कारक चतुर्थ भाव है, जो हृदय का भी कारक है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, पूर्व और उत्तर दिशा को अगम दिशा और दक्षिण और पश्चिम दिशा को अंत दिशा माना गया है। ज्योतिष अनुसार, पूर्व दिशा में सूर्य और उत्तर दिशा में बृहस्पति का प्रभाव होता है।
वास्तु और ज्योतिष दोनों में ही दिशाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। उदाहरण के लिए, पश्चिम दिशा में शनि का प्रभाव होता है और दक्षिण-पश्चिम दिशा में मंगल का। इसी प्रकार, भवन की संरचना और ग्रहों के स्थिति के बीच संबंध स्पष्ट होता है।
**ग्रहों और वास्तु का संबंध:**
- **बृहस्पति:** खुली जगह, खिड़की, रोशनदान, द्वार, कलात्मक और धार्मिक वस्तुएं।
- **चंद्रमा:** बाहरी वस्तुएं।
- **शुक्र:** कच्ची दीवार, गाय, सुख-समृद्धि की वस्तुएं।
- **मंगल:** खान-पान संबंधित वस्तुएं।
- **बुध:** निर्जीव वस्तुएं, शिक्षा संबंधी।
- **शनि:** लोहा और लकड़ी का सामान।
- **राहु:** धूएं*का*स्थान,*नाली*का*गंदा*पानी*कबाड़ा।
- **केतु:** कम खुला सामान।
हर व्यक्ति की जन्मकुंडली के अनुसार, भवन के निर्माण का विश्लेषण किया जा सकता है। कालपुरुष की कुंडली में पाप ग्रहों की स्थिति और वास्तु दोष का निरीक्षण करने से पता चलता है कि किस दिशा में दोष है और उसे कैसे ठीक किया जा सकता है।
**ज्योतिष और वास्तु दोष के निवारण के उपाय:**
1. **लग्नेश लग्न में (शुभ ग्रह) हो तो:** पूर्व दिशा में खिड़कियां रखें।
2. **लग्नेश का लग्न में नीच, पीड़ित होना:** पूर्व दिशा में दोष दर्शाता है, जिससे मस्तिष्क संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।
3. **लग्नेश का 6, 8, 12वें में पीड़ित होना:** पूर्व दिशा में दोष पैदा करता है।
4. **षष्ठेश लग्न में हो तो:** पूर्व में खुला मगर शोरगुल हो सकता है।
5. **लग्नेश तृतीय भाव में:** ईशान्य कोण में टूट-फूट या निर्माण का संकेत।
6. **राहु-केतु की युति:** उस ग्रह संबंधी दिशा में दोष उत्पन्न करती है।
7. **शुभ ग्रह दशम भाव में हो तो:** वहां पर खुला स्थान होगा।
**व्यक्तिगत कुंडली के आधार पर वास्तु दोष निवारण:**
- **तृतीय भाव पीड़ित हो तो:** भाई-बहन को कष्ट।
- **चतुर्थ भाव व चतुर्थेश पीड़ित हो तो:** माँ को कष्ट।
- **सप्तम-नवम् भाव पीड़ित हो तो:** पत्नी और पिता को कष्ट होगा।
प्रत्येक व्यक्ति की जन्मकुंडली के अनुसार, उस दिशा के स्वामी/देवता अथवा उस दोष को दूर करने के उपाय सरलता से किए जा सकते हैं।
**संपर्क करें:**
- **शिव वैदिक ज्योतिष विज्ञान**
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जय महाकाली!
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